Monday, February 1, 2010

शुभिच्छा

दूर डाल की फुनगी पर
कोयल ने छेड़ा एक गीत
स्वीकार बधाई हो मेरी
सखा मेरे, मय प्रीत ।

कस्तूरी से तुम महको
जीवन की मरू भूमि में
संतोष प्राप्त कर, अमर रहो
सुख दुःख की लुका छिपी में ।

खूब फलो, आगे बढ़ो
बस, कर्मठता ही गुण है
ईमान, सहोदर रहे तुम्हारा
यही सर्वदा सदगुण है ।

दूज चंद्रमा से तुम शीतल
सबकी आँखिन में बसते हो
अखंड दीप से , तुम रोशन
पर, दंभ नहीं तुम भरते हो ।

तरुवर ज्यों , लदा कंद से
नतमस्तक हो कहता है
सुस्ताओ दो पल, छाँव में मेरी
क्षुधा शांत भी करता है ।

मीठे पानी के निर्झर से
कल कल करके बहते हो
मंशाएं बलवती रहे तुम्हारी
जिसकी आस को पाला करते हो ।

लाभ कमाओ , यश बढे
उम्मीद बकाया न रहे
महालक्ष्मी और सरस्वती
दोनों पहलू में रहे ।

न दू में एक पुष्पगुच्छ
न कोई और उपहार
चिरायु यौवन रहे तुम्हारा
अक्षय , सदाबहार ।

3 comments:

  1. aapki kavitaaon mein geetaktamta aur vyanjana bahut sunder hote hain ! har kavita nai baangi liye hoti hai... jab duniya itni adhunik ho gai hai... emtions badal rahe hain... iss yug mein bhi aap itni sunder bhav-smapoorit kavitaayen likh rahi hain.. ye sunder baat hai...
    न दू में एक पुष्पगुच्छ
    न कोई और उपहार
    चिरायु यौवन रहे तुम्हारा
    अक्षय , सदाबहार ।
    itni sunder kaamna aaj ke bhauti yug mein kaun karta hai... badhai ho !

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  2. shabd sanyojan ka kamaal mujhe jaishankar prasad ji ki yaad dila gaya.....waah

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  3. इस सदिच्छा से सुन्दर उपहार और क्या कोई अपने आत्मीय को दे सकता है...
    अपने भावों को बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने...

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