Sunday, February 7, 2010

अभिलाषा

यो चातक के जैसे मुझे न निहारो

मैं अभिलाषा तुम्हारी, नेह मुझ पर वारो ।

सम्मोहन सा बंधन, ये अनजानी सी डगर

कहाँ इसकी मंजिल, है किसको खबर ।

दिल में बसाये जाते हो किधर

कुछ तो बोलो , जरा आओ इधर ।

ये प्रेम पगडण्डी, चलना इस पर भारी

नहीं है सरल, है तलवार दोधारी ।

मेरी रह-गुजर पर , यो दौड़े चले आये

हथेली पर रख कर दिल, नजराना लिए आये।

1 comment:

  1. "ये प्रेम पगडण्डी, चलना इस पर भारी
    नहीं है सरल, है तलवार दुधारी ।"
    sunder rachna ! prem ke dwand ko pradarshit karti yeh rachna ! sunder bhav !

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